Saturday, February 19, 2022

जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में

 



                          ग़ज़ल

जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में,
जिसने तडपाया मुझे जलती हुई इक आग में |

बेसबब ग़म आह बन निकलेगी उसके लहजे से,
दिल धड़कता पर रहेगा आस रख फ़रियाद में |

जिस्म से ज्यूँ रूह निकले होता क्या पूछो मुझे,
आरज़ू उसके मिलन की ज्यूँ रहे जब ख़्वाब में |

ज़ुल्फ़ दिल पे यूँ है काबिज़ भूल कर भूला नहीं,
चल रहा जिसका नशा देखो अभी भी शराब में |

जिन हवाओं में कयामत अब तलक देखी न थी,
वो अदा इन आँखों ने देखी थी उनके शबाब में ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'


10 comments:

  1. वाह , क्या बात ।
    उम्दा ग़ज़ल ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद संगीत जी आपका ।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-2-22) को "प्यार मैं ही, मैं करूं"(चर्चा अंक 4348)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. वाह ! बेहतरीन ग़ज़ल

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  4. शानदार गज़ल
    बहुत खूब
    बधाई

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  5. आग्रह है मेरे भी ब्लॉग में सम्मलित हों

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  6. उम्दा सृजन।
    हृदय स्पर्शी ग़ज़ल।

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    1. हार्दिक आभार वीणा जी ।

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