दगा दिया था अपनों ने यही मुझे मलाल था ।
कसूर भी था अपनों की ज़मीर का कमाल था ।
यूँ हसरतों की आग जिनकी रूह तक निगल गई,
ये वलवलों का जोर था या उनका ही बवाल था ।
मैं जिस के वास्ते भी लिख रहा था वो इबारतें,
वो जिस तरह जुदा हुआ था वो भी इक सवाल था ।
चुना था जिसने हमसफ़र उसी ने छोड़ा ये सफर,
न यार ही रहा यूँ हसरतों का इंतकाल था ।
नसीब में नहीं था जो उसी का रंजो गम था ये,
किसे पता ये बे-वफा का रंग बे-मिसाल था ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
1212 1212 1212 1212
वलवलों=उमंग
बवाल= झंझट
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