Tuesday, February 22, 2022

उठ के महफ़िल से चला उसने मनाया भी नहीं


उठ के महफ़िल से चला उसने मनाया भी नहीं,
कोई शिकवा या गिला मुझको बताया भी नहीं ।

ज़िन्दगी में था सुना है वो बहुत खुश भी मगर,
उसने कोई दीप मुहब्बत का जलाया भी नहीं ।

किस तरह चेहरे पे चेहरा था टिकाया उसने,
दिल पे कितने हैं ज़ख़्म उसके दिखाया भी नहीं ।

मैनें खोई थी मुहब्बत यूँ ही किसकी खातिर,
जिसने वादा तो कभी अपना निभाया भी नहीं ।

उसके अहसास को छूने की थी जुर्रत मैनें,
उसकी हसरत थी कि नफ़रत ये जताया भी नहीं ।

आज दिल पे जो निगाहों से दिया उसने ज़ख़्म,
मुझपे इल्जाम कोई उसने लगाया भी नही ।

आजकल मुझको बहारें भी खिजां लगती हैं,
'हर्ष' ने खुद भी कभी मुझको सताया भी नहीं ।


हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)
◆दिल की आवाज भी सुन दिल के फसाने पे न जा ।
◆रंग और नूर की बारात कुसी पेश करूँ
◆तेरी तस्वीर को सीने पे लगा रक्खा है ।


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