खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो,
पर निगाहों से गिरें कैसे उठा लूँ यारो ।
सोहबत से भी करें जिनकी हैं परहेज अगर,
अपनी महफ़िल में उन्हें कैसे बुला लूँ यारो ।
दुश्मनी रख के मेरे काम बहुत आता है,
ख़त को क़ासिद के लिए छत से गिरा लूँ यारो ।
देखो वो चाँद फ़लक से मेरी छत पे आया,
अपने जज़्बात बता कैसे सँभालूँ यारो ।
फैसले के लिए उसने था बुलाया मुझको,
दिल में क्या बात कहा बात बता लूँ यारो ।
आस्तीनों में यूँ साँपों को मैं झेलूँ कैसे,
दो इज़ाज़त तो ज़रा बीन बजा लूँ यारो ।
'हर्ष' आया है मेरे शह्र मिला दे कोई,
अपनी सोई हूई तकदीर जगा लूँ यारो
हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)
तर्ज़/बह्र: होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा ।
आपकी लिखी रचना सोमवार 14 जून 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
रचना का लिंक देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
ReplyDeleteसादर
सुन्दर-सुन्दर शेर से सजी उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत बहुत नवाज़िश आपकी विभा रानी जी ।
Deleteसादर
गंभीर ग़ज़ल ..... हर शेर अपने आप में मुक्कमल ।
ReplyDeleteनज़रों से जो गिर जाए उसे कैसे उठाऊँ ? वाकई कठिन है ।
एक जिज्ञासा --- क्या हम ऑरकुट के समय से परिचित हैं ? आप बैंक में कार्यरत थे ? आभा खेत्रपाल की कम्युनिटी में थे ?
आदरणीय दीदी..
Deleteआरकुट में तो मैं भी थी
जब लोग शीलता लांघने लगे
तो छोड़ दी..
सादर नमन..
ये तो हर जगह होता है । हम तो किनारा कर बचने की कोशिश करते थे , फिर भी कभी कभी व्यर्थ के वाद विवाद में फंस ही जाते थे । मैं रश्मि प्रभा जी की कम्युनिटी में भी थी ।
Deleteशुक्रिया संगीत जी ।
Deleteजी संगीता जी हम orkut पर भी साथ ही थे । लोगो मे आपसी प्रेम कम होने लगा था । मैं बैंक में ही कार्यरत था ।
आपकी यादाश्त बहुत अच्छी है ।
सादर
और आप द्वारका ( दिल्ली ) के ही बैंक में थे । ये पहले इस लिए नहीं लिखा कि कहीं आप कोई अन्य ही हों । शुक्रिया ।
Deleteद्वारका में मेरी रिहाईश है मेंरा बैंक कनाट प्लेस में था ।
Deleteव्वाहहह..
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल..
आभार..
सादर..
बहुत बहुत शुक्रिया यशोदा जी ।
Deleteउम्मीद करते है आप इसी तरह आते रहेंगे ।
सादर
वाह बेहतरीन ग़ज़ल।
ReplyDeleteबहुत बहुत नवाज़िश आओकी आ0 अनुराधा जी ।
Deleteसादर ।
बहुत अच्छी ग़ज़ल सर, हर बंध अपने अर्थ समेटे हुए है।
ReplyDeleteसादर।
शुक्रिया आ0 श्वेता सिन्हा जी ।
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन गजल ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आ0 जिज्ञासा जी ।
Deleteसादर
खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो,
ReplyDeleteपर निगाहों से गिरें कैसे उठा लूँ यारो ।
वाह...बहुत सुन्दर
आपकी आमद और पसंदगी के लिए बहुत बहुत धन्यवाई उषा किरण जी ।
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