Sunday, June 13, 2021

पर निगाहों से गिरें कैसे उठा लूँ यारो


खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो,

पर निगाहों से गिरें कैसे उठा लूँ यारो ।


सोहबत से भी करें जिनकी हैं परहेज अगर,

अपनी महफ़िल में उन्हें कैसे बुला लूँ यारो ।


दुश्मनी रख के मेरे काम बहुत आता है,

ख़त को क़ासिद के लिए छत से गिरा लूँ यारो ।


देखो वो चाँद फ़लक से मेरी छत पे आया,

अपने जज़्बात बता कैसे सँभालूँ यारो ।


फैसले के लिए उसने था बुलाया मुझको,

दिल में क्या बात कहा बात बता लूँ यारो ।


आस्तीनों में यूँ साँपों को मैं झेलूँ कैसे,

दो इज़ाज़त तो ज़रा बीन बजा लूँ यारो ।


'हर्ष' आया है मेरे शह्र मिला दे कोई,

अपनी सोई हूई तकदीर जगा लूँ यारो


हर्ष महाजन 'हर्ष'


2122 1122 1122 22(112)

तर्ज़/बह्र: होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा ।

20 comments:

  1. आपकी लिखी  रचना  सोमवार 14  जून   2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।संगीता स्वरूप 

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  2. रचना का लिंक देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
    सादर

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  3. सुन्दर-सुन्दर शेर से सजी उम्दा ग़ज़ल

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    1. बहुत बहुत नवाज़िश आपकी विभा रानी जी ।
      सादर

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  4. गंभीर ग़ज़ल ..... हर शेर अपने आप में मुक्कमल ।
    नज़रों से जो गिर जाए उसे कैसे उठाऊँ ? वाकई कठिन है ।
    एक जिज्ञासा --- क्या हम ऑरकुट के समय से परिचित हैं ? आप बैंक में कार्यरत थे ? आभा खेत्रपाल की कम्युनिटी में थे ?

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    1. आदरणीय दीदी..
      आरकुट में तो मैं भी थी
      जब लोग शीलता लांघने लगे
      तो छोड़ दी..
      सादर नमन..

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    2. ये तो हर जगह होता है । हम तो किनारा कर बचने की कोशिश करते थे , फिर भी कभी कभी व्यर्थ के वाद विवाद में फंस ही जाते थे । मैं रश्मि प्रभा जी की कम्युनिटी में भी थी ।

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    3. शुक्रिया संगीत जी ।
      जी संगीता जी हम orkut पर भी साथ ही थे । लोगो मे आपसी प्रेम कम होने लगा था । मैं बैंक में ही कार्यरत था ।
      आपकी यादाश्त बहुत अच्छी है ।
      सादर

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    4. और आप द्वारका ( दिल्ली ) के ही बैंक में थे । ये पहले इस लिए नहीं लिखा कि कहीं आप कोई अन्य ही हों । शुक्रिया ।

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    5. द्वारका में मेरी रिहाईश है मेंरा बैंक कनाट प्लेस में था ।


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  5. व्वाहहह..
    शानदार ग़ज़ल..
    आभार..
    सादर..

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया यशोदा जी ।
      उम्मीद करते है आप इसी तरह आते रहेंगे ।
      सादर

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  6. वाह बेहतरीन ग़ज़ल।

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    1. बहुत बहुत नवाज़िश आओकी आ0 अनुराधा जी ।
      सादर ।

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  7. बहुत अच्छी ग़ज़ल सर, हर बंध अपने अर्थ समेटे हुए है।
    सादर।

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  8. शुक्रिया आ0 श्वेता सिन्हा जी ।
    सादर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आ0 जिज्ञासा जी ।
      सादर

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  10. खाके ठोकर जो गिरें वो तो सँभालूँ यारो,

    पर निगाहों से गिरें कैसे उठा लूँ यारो ।
    वाह...बहुत सुन्दर

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  11. आपकी आमद और पसंदगी के लिए बहुत बहुत धन्यवाई उषा किरण जी ।

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