Sunday, June 20, 2021

हो मुहब्बत ख़फ़ा तो वफ़ा कौन दे

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हो मुहब्बत ख़फ़ा तो वफ़ा कौन दे,

ज़ख़्म गहरा है पर अब दवा कौन दे ।


ख़्वाब तू था मेरा ज़िन्दगी भी मेरी,

इस हक़ीक़त का तूझको पता कौन दे ।


तेरी उल्फ़त को गर मैं निभा न सका,

मानता हूँ मैं पर अब सज़ा कौन दे ।


बेवफ़ा गर हूँ मैं तो सज़ा दे मुझे,

बद्दुआ देगा तू फिर दुआ कौन दे ।


दिल ये पत्थर नहीं बेवफ़ा भी नहीं,

पर ज़माने में इसको हवा कौन दे ।


हर्ष महाजन 'हर्ष'

212 212 212 212

"तुम अगर साथ देने का वादा करो"

2 comments:

  1. ख़्वाब तू था मेरा ज़िन्दगी भी मेरी,

    इस हक़ीक़त का तूझको पता कौन दे ।

    क्या बात कही है । उम्दा ग़ज़ल ।

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    1. शुक्रिया आदरणीय संगीत जी । आपकी ये ग़ज़ल पसंद आई ।

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