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हो मुहब्बत ख़फ़ा तो वफ़ा कौन दे,
ज़ख़्म गहरा है पर अब दवा कौन दे ।
ख़्वाब तू था मेरा ज़िन्दगी भी मेरी,
इस हक़ीक़त का तूझको पता कौन दे ।
तेरी उल्फ़त को गर मैं निभा न सका,
मानता हूँ मैं पर अब सज़ा कौन दे ।
बेवफ़ा गर हूँ मैं तो सज़ा दे मुझे,
बद्दुआ देगा तू फिर दुआ कौन दे ।
दिल ये पत्थर नहीं बेवफ़ा भी नहीं,
पर ज़माने में इसको हवा कौन दे ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212
"तुम अगर साथ देने का वादा करो"
ख़्वाब तू था मेरा ज़िन्दगी भी मेरी,
ReplyDeleteइस हक़ीक़त का तूझको पता कौन दे ।
क्या बात कही है । उम्दा ग़ज़ल ।
शुक्रिया आदरणीय संगीत जी । आपकी ये ग़ज़ल पसंद आई ।
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