Sunday, June 13, 2021

दिल में रखा जो तूने मेरे लिए सज़ा सा

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अब राज़ क्या है मुझको ज़ाहिर करो ज़रा सा,

दिल में रखा जो तूने मेरे लिए सज़ा सा ।


ये चश्म-ए-अश्क़ देखो, क्या मर्ज़ की दवा है,

हो टीस जिसके दिल में, पूछो उसे नशा सा ।


अब जिस तरफ भी देखूँ तन्हाई का है आलम,

है ज़िन्दगी में तेरे किरदार अब ज़रा सा ।


यूँ महफिलों से मेरा है उठ चुका भरोसा,

पर जानता हूँ मेरा, दिल है जला जला सा ।


उनका था ज़िन्दगी में मुझको फ़क़त सहारा,

अनजान हो के उसने, ख़ुद को किया ज़ुदा सा ।


-----हर्ष महाजन 'हर्ष'


221 2122 221 2122

6 comments:

  1. आदरणीय सर, इतने सुंदर शेर हैं,इस खूबसूरत गज़ल के, कि किसी एक को चुनकर टिप्पणी करना नाइंसाफी होगी,उम्दा उत्कृष्ट रचना के लिए शुभकामनाएं।

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    1. आ0 जिज्ञासा सिंह जी आपकी आमद और पसंदगी के लिए तहे दिल से शुक्रिया । उम्मीद है आप यूँ ही इस ब्लॉग का सफर करते रहेंगे ।
      सादर

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  2. हर्ष जी ,
    आपकी गज़लों के तो शुरू से ही कायल रहे हैं ।
    किस शेर को चुने और किसे छोड़ूँ ? हर शेर इतना वजन लिए कि सच ही किसी एक पर तो दाद नहीं दे सकती ।
    बहुत शानदार ग़ज़ल ।

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    1. आ0 संगीता स्वरूप जी पहले इस ब्लाग पर आने ग़ज़ल के बारे में अपनी राय रखने के तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ । आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी मेहनत वसूल हो गयी । उम्मीद है आप इसी तरह इस ब्लाग का सफर करती रहेंगी । धन्यवाद ।
      सादर ।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आ0 पम्मी सिंह तृप्ति जी मेरी ग़ज़ल पांच लिंको के पटल पर रखने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।

      शुक्रिया ।

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