Monday, March 7, 2022

ख़ुदा के सामने सर को झुका लेता तो अच्छा था

ख़ुदा के सामने सर को झुका लेता तो अच्छा था ,
ज़रा से ग़म ही थे उनको छुपा लेता तो अच्छा था ।

कभी लिख कर ख़तों में उनको सच खुद ही बता देता,
मुहब्बत में अना को खुद हटा लेता तो अच्छा था ।

उठीं जो बद्दुआए थीं कभी उनके लिए लेकिन,
वो थे तो ज़िंदगी मेरी बचा लेता तो अच्छा था ।

दरींचों से मैं उनके दिल में दाखिल तो हुआ लेकिन,
जो उसमें आग नफ़रत की बुझा लेता तो अच्छा था ।

खुशी से झूमना चाहत थी उनकी पर मिली गफ़लत,
ज़रा उनके लिए मैं मुस्करा लेता तो अच्छा था ।

उन्हें था नाज़ जुल्फों पर मगर उम्मीद कुछ हमसे,
मैं उनकी जुल्फें ग़ज़लों में सजा लेता तो अच्छा था ।

लबों पर प्यास शिद्दत से मगर थी दर्द से नफरत,
छुपा कर दर्द आंखों में बसा लेता तो अच्छा था ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 9 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्

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  2. बहुत उम्दा ग़ज़ल. दाद स्वीकारे।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरनीय !

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