Saturday, March 12, 2022

बहुत बदनाम कर के छोड़ा उसने इस जमाने में

बहुत बदनाम कर के छोड़ा उसने इस जमाने में,
लगेंगी सदियाँ मुझको बे-वफ़ा के ग़म भुलाने में ।

ये उसकी ज़िद थी ज़ख़्मों का रहे मेरा सफ़ऱनामा, 
लगाई बेसबब फिर तोहमतें उसने सताने में ।

दिखाया इश्क़ उसने आसतीं का साँप था लेकिन,
सुनाकर जुल्फों के नग्में वो आया आशियानें में ।

जगाकर दिल की धड़कन शहर-ए-दिल जब कर दिया रोशन,
भरी महफ़िल में था फिर मुब्तिला रहबर बनाने में ।

मुहब्बत में कहीं मैं इस तरह मशहूर हो जाता,
लगाता बरसों मैं भी दोस्ती को आजमाने में । 

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222
इन नग्मों की धुन पर गुनगुनाइए
👇👇
1. मुहब्बत हो गई जिनको वो परवाने कहां जाएं
2. मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता 
3. चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों 

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया दिग्विजय जी ।

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  2. बहुत उम्दा ग़ज़ल।
    हर शेर दिल को छू रहा है।

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    1. दिली धन्यवाद आपका । उम्मीद करता हूँ आप आइंदा भी होंसिला अफजाई के लिए आते रहेंगे ।

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  3. बेहतरीन शायरी

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-3-22) को "खिलता फागुन आया"(चर्चा अंक 4370)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. शुक्रिया कामिनी जी ।

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  5. बहुत सुंदर शायरी।

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  6. दिली धन्यवाद आपका । उम्मीद करता हूँ आप आइंदा भी होंसिला अफजाई के लिए आते रहेंगे ।

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