Monday, April 4, 2022

उनके किस्से नए भी पुराने लगे

 

उनके किस्से नए भी पुराने लगे,
जो भी दिन थे पुराने सुहाने लगे ।

उनकी ज़ुल्फ़ों तले शाम होगी कभी,
ऐसा मौसम बना पर ज़माने लगे ।

ज़ख्म नखरों ने उनके दिए थे बहुत,
आहें निकली तो उनको तराने लगे ।

जिनके आने से दिल था समंदर हुआ,
गैर की बाहों में दिल लुटाने लगे ।

रो पड़ा था फलक बेवफा देखकर,
फिर पुराने बहाने सुनाने लगे ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212
"तुम अगर साथ देने का वादा करो"


6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 6 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्

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  2. सुन्दर सुन्दर बहुत सुन्दर ग़ज़ल

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  3. वाह!खूबसूरत सृजन ।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०८-०४ -२०२२ ) को
    ''उसकी हँसी(चर्चा अंक-४३९४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. वाह!!!
    लाजवाब गजल ।

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  6. बहुत सुंदर रचना

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