Tuesday, August 11, 2020

लगा दोस्तों को गँवारा नहीं था

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लगा  दोस्तों को  गँवारा नहीं था,
तभी महफ़िलों में पुकारा नहीं था ।

ज़ुदा तो हुए सब बहे अश्क़ इतने,
मग़र अश्क़ कोई हमारा नहीं था ।

ये चाहा करूँ बेदख़ल उनको ख़ुद से,
मग़र हमको दिल का इशारा नहीं था ।

बहुत मात लहरों को दी हमने लेकिन,
समंदर में कोई, किनारा नहीं था ।

लकीरों में हर पल थे ढूँढा किये हम,
अभी दिल से जिनको उतारा नहीं था ।

सफर तो दिलों का था मुश्किल नहीं पर,
अना में किसी ने पुकारा नहीं था ।

उठी इतनी नफ़रत अचानक दिलों में,
जुदाई बिना अब गुज़ारा नहीं था ।

हमें हमसफ़र अब मिले भी तो कैसे,
मुक़द्दर का कोई भी मारा नहीं था ।

---------हर्ष महाजन 'हर्ष'

122 122 122 122
"तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ ।"

10 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी ।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ अगस्त २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. नमस्कार ।
      मेरी रचना को 'पांच लिंकों का आनंद' पर स्थान देने हेतु शुक्रिया ।
      सादर

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  3. बेहतरीन ग़ज़ल
    वाह....

    मेरे ब्लॉग "ग़ज़लयात्रा" पर आपका स्वागत है -
    http://ghazalyatra.blogspot.com/?m=1

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    1. शुक्रिया वर्ष जी ।

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  4. वाह ... क्या बात क्या बात ... जिंदाबाद ...

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    1. बेहद शुक्रिया आदरणीय नासवा जी ।

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