Monday, May 31, 2021

क्युं अपने सभी याद आने लगे हैं

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क्युं अपने सभी याद आने लगे हैं,

दिया दुश्मनी का जलाने लगे हैं ।


वो चुपके से सर रख के काँधे पे उनके,

वफ़ा नफ़रतों की बढ़ाने लगे हैं ।


हवाओँ में फिर आँधियों सी ख़बर है,

वो आइनों पे पत्थर चलाने लगे हैं ।


ये कैसे मुसलसल वो ऑंसू थमेंगे,

यूँ अपनों के ऐसे निशाने लगे हैं ।


दिया जब बुझा देखकर उनके घर का,

ख़बर थी महल को सजाने लगे हैं ।


बस्ती में अपनी नए ज़ख्म देखो,

वो गैरों को अपना बताने लगे हैं ।


कहूँ काल उनको या कर्मों का लेखा,

चिता से दिए वो जलाने लगे हैं ।


नहीं फ़ायदा बंदगी का ख़ुदा की ,

हवाओं से पुल वो बनाने लगे हैं।


ज़ुबाँ ज़ह्र उगलेगी इतना पता था,

ये किरदार सच में निभाने लगे हैं ।


-----हर्ष महाजन 'हर्ष'

6 comments:

  1. बहुत गहरी बातें ..

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    1. कविता रावत जी आपको ये रचना पसंद आई इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 9 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. Pammi singh ji मेरी ग़ज़ल को "पाँच लिंको का आनंद पर" पर रखने के लिए शुक्रिया ।

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  4. दिया जब बुझा देखकर उनके घर का,

    ख़बर थी महल को सजाने लगे हैं ।

    कितनी नफरतें भला क्यों इस कदर याद आने लगे ।
    हर शेर में एक तल्खी भारी हुई ।

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  5. संगीत जी
    आज का स्वभाव ही बदल चुका है । तल्खी हावी है ।

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