बड़ी चोट खाई जवां होते-होते,
यूँ गुजरे थे हम इश्क़ में रोते-रोते ।
ज़माने ने लिख दी अजब बेवफाई,
ये इल्जाम ले हम थके ढोते-ढोते ।
यूँ किसके लिए हम बता अब तू साहिल,
कभी तो तू ख्वाबों में मिल सोते-सोते ।
तमन्ना है फुरसत से जुल्फों को तेरी,
संवारेंगे हाथों सहम खोते-खोते ।
बसर हो न अब ज़िंदगानी ये तेरी,
ये रिसते हुए ज़ख़्म अब धोते-धोते ।
--हर्ष महाजन 'हर्ष' ©
"तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ'
No comments:
Post a Comment