Sunday, October 17, 2021

बड़ी चोट खाई जवां होते-होते

 

बड़ी चोट खाई जवां होते-होते,
यूँ गुजरे थे हम इश्क़ में रोते-रोते ।

ज़माने ने लिख दी अजब बेवफाई,
ये इल्जाम ले हम थके ढोते-ढोते  ।

यूँ किसके लिए हम बता अब तू साहिल,
कभी तो तू ख्वाबों में मिल सोते-सोते ।

तमन्ना है फुरसत से जुल्फों को तेरी,
संवारेंगे हाथों सहम खोते-खोते ।

बसर हो न अब ज़िंदगानी ये तेरी,
ये रिसते हुए ज़ख़्म अब धोते-धोते ।

--हर्ष महाजन 'हर्ष' ©
"तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ'


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