Monday, November 29, 2021

ओस की बूंदें जब हमको मोती लगें,

ओस की बूंदें जब हमको मोती लगें,

दूबों पर टिकती हमको वो सोती लगें ।


उँगलियों से उन्हें छू के देखूँ मैं जब,

वो सितारों को खुद में ही खोती लगें ।


मुट्ठियों में कभी बन्द कर लूँ भी गर,

जो लकीरें है हाथों में धोती लगें ।


जब वो पत्तों से छल-छल सी धुन वो करें,

गिर के टप-टप वो सुंदर सी मोती लगें ।


उँगली के पोरों पे कैद जब भी करूँ,

दिल में उठती उमंगों को ढोती लगें ।


हर्ष महाजन 'हर्ष'

212 212 212 212

5 comments:

  1. वाह !
    उँगली के पोरों पे कैद जब भी करूँ,

    दिल में उठती उमंगों को ढोती लगें ।

    ..क्या सुंदर भाव हैं, शानदार रचना ।

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  2. बहुत खूब ...
    लाजवाब अहिं सभी शेर इस कमाल की गज़ल के ...

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  3. हर शेर लाजवाब ओस की सुंदरता में चार चांद लगाती उम्दा ग़ज़ल।

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  4. आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया व आभार !!

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