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बन गया मैं यूँ खुदा, सूली पे चढ़ जाने के बाद,
पत्थरों में पूजे मुझको, अब सितम ढाने के बाद |
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पत्थरों में पूजे मुझको, अब सितम ढाने के बाद |
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बनके पत्थर देखता हूँ, इंतिहा बुत परस्ती की,
फूल बरसाए है दुनियां, चोट बरसाने के बाद |
मैं था पागल इश्क में, उसको न जाने क्या हुआ,
लौ बुझा दी इस दीये की, इतना समझाने के बाद |
बे-वफाई छेदती है, नर्म दिल की परतों को,
हूर रुख्सत हो कभी दिल में वो बस जाने के बाद |
इतना रोया हूँ, मगर अब, अश्क आँखों में नहीं,
पत्थरों के शहर में पत्थर हुआ आने के बाद |
हर्ष महाजन ©
2122 2122 2122 212
फूल बरसाए है दुनियां, चोट बरसाने के बाद |
मैं था पागल इश्क में, उसको न जाने क्या हुआ,
लौ बुझा दी इस दीये की, इतना समझाने के बाद |
बे-वफाई छेदती है, नर्म दिल की परतों को,
हूर रुख्सत हो कभी दिल में वो बस जाने के बाद |
इतना रोया हूँ, मगर अब, अश्क आँखों में नहीं,
पत्थरों के शहर में पत्थर हुआ आने के बाद |
हर्ष महाजन ©
2122 2122 2122 212
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