Saturday, October 24, 2015

दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ,

...

दिल चाहता है तुझसे कभी, ना गिला करूँ,
इस ज़िन्दगी में तुझसे यही सिलसिला करूँ |

दिन भर शराब पी के हुआ,था मैं दरबदर,
अब ढूंढता हूँ चादर ग़मों की सिला करूँ |

नफरत थी जिन दिलों में, भुलाया नहीं मुझे,
दिल में बता खुदा, उनके, कैसे खिला करूँ |

अमन-ओ-अमां के साये ही जिनसे नसीब हो,
ऐसे चमन जमी दर ज़मीं काफिला करूँ |

तन्हा है सब सफ़र और तनहा हैं रास्ते,
अब सोचता हूँ तुझसे यहाँ ही मिला करूँ |

© हर्ष महाजन

2212 1221 2212 12

No comments:

Post a Comment