Wednesday, October 7, 2015

खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले

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खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले,
जहाँ ढूँढू मैं अरमां को , वहां अरमां भी कम निकले |

हजारों गम मेरे दिल में न मुझको राख ये कर दें ,
कहीं इन सुर्ख आँखों से नदी बन के न हम निकले |


तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी मैं भूल जाता था,
पुराने ख़त दराजों से जो निकले आज, नम निकले |


किसी की जुस्तजू करके कि खुद को खो चुका हूँ मैं,
उधर से बेरुखी उनकी इधर दुनिया से हम निकले |


जगह छोड़ी है जख्मों ने कहाँ अब 'हर्ष' सीने में,
कहीं इन सुर्ख ज़ख्मों से न लावा बनके गम निकले |


हर्ष महाजन

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