Sunday, July 24, 2016

अबकी चुनावी जंग में हर दाव चलेगा

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अबकी चुनावी जंग में हर दाव चलेगा,
तलवार से या तीर से हर घाव चलेगा |


साँसे भी दुश्मनों की यहाँ घुटने लगेंगी,
झुकने न देंगे न्याय को हर भाव चलेगा |


लगता नहीं है डर हो समंदर में ज़हर भी,
हर शख्स अपनी-अपनी ले के नाव चलेगा |


गलियारों में तो देखना जब आग लगेगी,
तो साफ़-साफ़ चेहरों का ब्हाव चलेगा |


ले लेंगे अबकि छीन हकूकों को हलक से,
मत सोच छोटा-मोटा ‘हरश’ दाव चलेगा |


हर्ष महाजन
221 2121 1221 122
(मुजारी मुसम्मन अखरब मक्फुफ़ मह्जुफ़ )

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