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जहाँ में आदमी भी आदमी लगता नहीं मुझको,
यहाँ मुर्दा-परस्ती है खताएं कह रहीं मुझको |
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यहाँ मुर्दा-परस्ती है खताएं कह रहीं मुझको |
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जो कहते हैं ज़रा देखो कहीं काँटा न चुभ जाये,
रुपहली साजिशें छलके ले जाएँ फिर कहीं मुझको |
कहें वो बे-इरादा है और उनका इस तरह आना,
कहूँ क्या खाकदाँ से अब लगे अच्छा नहीं मुझको |
निगाह-ए-जुर्म का पर्दे में धीरे से चले आना ,
खुदा से इल्तिजा छाये न वहशीपन यहीं मुझको |
किसी की चाप का जलते ख्यालों में चले आना,
नहीं जुर्रत किसी गिध की जो छेड़ेगा कहीं मुझको |
हर्ष महाजन
खाकदाँ= संसार
bahr 1222 1222 1222 1222
रुपहली साजिशें छलके ले जाएँ फिर कहीं मुझको |
कहें वो बे-इरादा है और उनका इस तरह आना,
कहूँ क्या खाकदाँ से अब लगे अच्छा नहीं मुझको |
निगाह-ए-जुर्म का पर्दे में धीरे से चले आना ,
खुदा से इल्तिजा छाये न वहशीपन यहीं मुझको |
किसी की चाप का जलते ख्यालों में चले आना,
नहीं जुर्रत किसी गिध की जो छेड़ेगा कहीं मुझको |
हर्ष महाजन
खाकदाँ= संसार
bahr 1222 1222 1222 1222
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