Wednesday, March 9, 2016

यहाँ बहने लगीं, आतंक की, नदियाँ करीने से

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यहाँ बहने लगीं, आतंक की, नदियाँ करीने से,
लिखूँ आज़ाद किनको आये बदबू ख़ूँ-पसीने से |
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सियासी खेल में भूले हैं अस्मत लुट रही माँ की,
नहीं डरते लहू निकलेगा अपनों के ही सीने से |

जहाँ अखबार के कतरे भी जब सोने नहीं दे तो,
समझ लो उतरा हर माझी समंदर में सफीने से |

छिपे आतंक के आका सियासत के लिबासों मैं,
जुबां सच उगलेगी होंगे फिर बलवे हर कमीने से |

न है अब चैन सरहद पर शहर सोने से डरता है,
कभी लूटे हैं दुश्मन फिर कभी वो नामचीने से |

जहाँ शिर्कत करें लाखों आतंकी के ज़नाजे  पर,
करें उम्मीद क्यूँ फिर आज इक फौजी नगीने से |

हर्ष महाजन
बहर -
1222 1222 1222 1222

नामचीन = सुप्रसिद, नामवर, नामवाला

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