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यहाँ बहने लगीं, आतंक की, नदियाँ करीने से,
लिखूँ आज़ाद किनको आये बदबू ख़ूँ-पसीने से |
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लिखूँ आज़ाद किनको आये बदबू ख़ूँ-पसीने से |
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सियासी खेल में भूले हैं अस्मत लुट रही माँ की,
नहीं डरते लहू निकलेगा अपनों के ही सीने से |
जहाँ अखबार के कतरे भी जब सोने नहीं दे तो,
समझ लो उतरा हर माझी समंदर में सफीने से |
छिपे आतंक के आका सियासत के लिबासों मैं,
जुबां सच उगलेगी होंगे फिर बलवे हर कमीने से |
न है अब चैन सरहद पर शहर सोने से डरता है,
कभी लूटे हैं दुश्मन फिर कभी वो नामचीने से |
जहाँ शिर्कत करें लाखों आतंकी के ज़नाजे पर,
करें उम्मीद क्यूँ फिर आज इक फौजी नगीने से |
हर्ष महाजन
बहर -
1222 1222 1222 1222
नामचीन = सुप्रसिद, नामवर, नामवाला
नहीं डरते लहू निकलेगा अपनों के ही सीने से |
जहाँ अखबार के कतरे भी जब सोने नहीं दे तो,
समझ लो उतरा हर माझी समंदर में सफीने से |
छिपे आतंक के आका सियासत के लिबासों मैं,
जुबां सच उगलेगी होंगे फिर बलवे हर कमीने से |
न है अब चैन सरहद पर शहर सोने से डरता है,
कभी लूटे हैं दुश्मन फिर कभी वो नामचीने से |
जहाँ शिर्कत करें लाखों आतंकी के ज़नाजे पर,
करें उम्मीद क्यूँ फिर आज इक फौजी नगीने से |
हर्ष महाजन
बहर -
1222 1222 1222 1222
नामचीन = सुप्रसिद, नामवर, नामवाला
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