Monday, May 23, 2016

दिल को ऐसे ही सजा देता हूँ

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दिल को ऐसे ही सजा देता हूँ,
उनके ख़त खुद ही जला देता हूँ |
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जो नज़्म उनको पसंद आ जाए,
उनको कागज़ से हटा देता हूँ ।

राज़-ए-दिल जानता हूँ मैं लेकिन
खुश रहें उनको दुआ देता हूँ ।

आग जो दिल की कभी बुझती हो
सूखे ज़ख्मों को हवा देता हूँ ।

आज फिर उनको दुआ दी मैंने,
जिनकी हर बात भुला देता हूँ ।

वो ही मज़्मूं ख़त का याद आये,
आग जब दिल की बुझा देता हूँ ।

हर्ष महाजन ।

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