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दिल को ऐसे ही सजा देता हूँ,
उनके ख़त खुद ही जला देता हूँ |
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उनके ख़त खुद ही जला देता हूँ |
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जो नज़्म उनको पसंद आ जाए,
उनको कागज़ से हटा देता हूँ ।
राज़-ए-दिल जानता हूँ मैं लेकिन
खुश रहें उनको दुआ देता हूँ ।
आग जो दिल की कभी बुझती हो
सूखे ज़ख्मों को हवा देता हूँ ।
आज फिर उनको दुआ दी मैंने,
जिनकी हर बात भुला देता हूँ ।
वो ही मज़्मूं ख़त का याद आये,
आग जब दिल की बुझा देता हूँ ।
हर्ष महाजन ।
उनको कागज़ से हटा देता हूँ ।
राज़-ए-दिल जानता हूँ मैं लेकिन
खुश रहें उनको दुआ देता हूँ ।
आग जो दिल की कभी बुझती हो
सूखे ज़ख्मों को हवा देता हूँ ।
आज फिर उनको दुआ दी मैंने,
जिनकी हर बात भुला देता हूँ ।
वो ही मज़्मूं ख़त का याद आये,
आग जब दिल की बुझा देता हूँ ।
हर्ष महाजन ।
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