..
तू देख खुदा ऐसा कहीं मंज़र न मिलेगा,
अब कातिलों के शहर में खंज़र न मिलेगा |
अब देखो तुम ऐसा
कहीं मंज़र न मिलेगा,
इन कातिलों के शहर
में खंज़र न मिलेगा ।
आँखों से बहते अश्क
भी अब सोचते हैं ये
ढूंढेंगे ऐसा घर
भी तो ये घर न मिलेगा ।
ढूंढें कोई गमख्वार
अब गैरों के शहर में,
दुश्मन तो मिलेगा
मगर रहबर न मिलेगा ।
अब हो गया इन आंखों
में दर्दों का ज़खीरा,
टूटेगा ऐसे अश्कों
का समंदर न मिलेगा ।
हर्ष महाजन
हर्ष महाजन
No comments:
Post a Comment