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महफ़िल में नशा प्यार का लाना ही नहीं था ।
तो नग़मा मुहब्बत का सुनाना ही नहीं था ।
रौशन किया जो हक़ से तुझे जिसने था दिल में,
वो तेरी निगाहों का निशाना ही नहीं था
कर-कर के भलाई यहाँ रुस्वाई मिले तो,
ऐसा तुझे किरदार निभाना ही नहीं था ।
है डर तुझे हो जाएगा फिर दिल पे वो क़ाबिज़,
सँग उसके तुझे जश्न मनाना ही नहीं था।
होते हैं अगर कत्ल यहाँ हिन्दू मुसलमाँ,
मंदिर किसी मस्ज़िद को बनाना ही नही था।
डर डूब के मरने का तेरे दिल में था इतना,
तो इश्क़ के दरिया में नहाना ही नहीं था ।
हर्ष महाजन
221 1221 1221 122
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