Thursday, March 29, 2018

वो मेरा हुस्न औ वफ़ा हूँ मैं

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वो मेरा हुस्न औ वफ़ा हूँ मैं,
उसकी यादों में मुब्तिला हूँ मैं ।

चाँद बदली में छुप रहा लेकिन,
माना उसने कि बा-वफा हूँ मैं।

राहे तूफान में फँसी कश्ती,
ऐसी राहों में सँग चला हूँ मैं ।

दिल से नादाँ हूँ ये कहा उसने,
उसकी चाहत का सिलसिला हूँ मैं

तिरछी नज़रों से देखना उसका,
बुझ के हर बार ही जला हूँ मैं । (गिरह)

ग़ैर रखकर किए थे ज़ुल्म बहुत,
मेरे अपनों का ही छला हूँ मैं।

मेरे हाथों की कुछ लकीरों ने,
लिख दिया मुझको इक बला हूँ मैं 

इतना गिर-गिर के संभला हूँ लेकिन,
अब तलक़ कितनों को ख़ला हूँ मैं 

-------हर्ष महाजन
2122 1212 22/122

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