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अपनी ही ख़ता पर हो परिशां,जो दिल पे लगा कर रोते हैं,
वो लोग इमां के सच्चे हैं.............पर चैन से यारो सोते हैं ।
होता है फिदा दिल उनका भी,..धनवान वो मन के होते हैं,
होती है अदाएँ अल्लड़ सी.........दिल भंवरों से ही होते हैं ।
अब घुट ही न जाये दम उनका इन ग़ैर सी दिखती राहों में,
जो कीमती लम्हों को अपने.....फुटपाथ पे सोकर खोते हैं ।
अब छोड़ के कैसे जाएं वो कुछ कीमती रिश्तों की खातिर
जो रोज़ बिताते सड़कों पर.....खुशियों के पल जो बोते हैं ।
बर्बाद किये गुलशन इनके....कुछ वक़्ती गुनाहों ने लेकिन
जब पर्दा उठता कर्मों का......फिर अश्क़ बहाकर धोते हैं ।
हर्ष महाजन
221 1222 22 221 1222 22
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