Thursday, June 18, 2020

मत सोच हम भी खेल में हारे नहीं हुए

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मत सोच हम भी खेल में हारे नहीं हुए,
बस इतना फ़र्क है कि किनारे नहीं हुए ।

उनकी निग़ाहें नाज़ का मारा नहीं मग़र,
तहज़ीब इतनी थी कि इशारे नहीं हुए ।

ख़्वाहिश थी आके ख़ुद वो रिझा ले मुझे मग़र,
ख़त लिख के कह दिया कि  तुम्हारे नहीं हुए ।

औरों के रंज ओ ग़म दिए उसने अगर  मुझे,
फिर उनके क्यूँ नसीब हमारे नहीं हुए ।

हर शख्स चाहने लगा था इस कदर मुझे,
पर ज़िंदगी में वो भी सहारे नहीं हुए ।

-----हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहर:-
221  2121 1221 212
मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी कभी

8 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२० -०६-२०२०) को 'ख्वाहिशो को रास्ता दूँ' (चर्चा अंक-३७३८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया मेरी कृति को चर्चा में शामिल करने के लिए ।
      सादर

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    1. मुहब्बतों के लिए शुक्रिया ।

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  3. हर शख्स चाहने लगा था इस कदर मुझे,
    बढ़िया

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    1. आपकी पसंदगी के लिए तहे दिल से शुक्रिया हिन्दीगुरु जी ।
      सादर

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  4. बहुत बढ़िया

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    1. बेहद शुक्रिया आपका ।

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