💐#विनम्र_श्रद्धांजलि 💐
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#प्रतिभाशाली_कलाकार_एवं_उम्दा_शख्सियत_सुशांत_सिंह_राजपूत_जी की असमय विदाई पर 🙏#विनम्र_शाब्दिक_श्रद्धांजलि
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जो बशर अपनों के ज़ुल्मों से बिख़र जाते हैं,
अपनी हस्ती को मिटा कर वो गुज़र जाते हैं ।
ले चले क़ोई भी क़ामिल उसे मंज़िल की तरफ,
फ़िर ज़िधर जाते हैं वो रूह में उतर जाते हैं ।
ग़र ख़बर थी कि वो शिकवों से ख़फ़ा हैं इतना,
कौन क़ातिल है देके दर्द-ए-ज़िगर जाते हैं ।
जो अदाओं से क़भी दिल में उतर जाएँ वो,
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं ।**
ज़ुल्म जब हद से गुज़रता है तो हँसती दुनियाँ,
मौत पर शख़्स वही अश्क़ ले घर जाते हैं ।
कौन कहता है ये तक़दीर ख़ुदा लिख़ता है,
कर्म अपने हैं हथेली में उभर जाते हैं ।
----हर्ष महाजन 'हर्ष'
बशर= आदमी
क़ामिल= पूर्ण/perfect
बहर:-
2122 1122 1122 22
"दिल की आवाज़ भी सुन दिल के फ़साने पे न जा"
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया जोशी जी ।
ReplyDeleteसादर ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 24 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत शुक्रिया तृप्ति जी ।
Deleteसादर ।
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ReplyDeleteबेहतरीन...
ReplyDeleteसादर.।
शुक्रिया दिग्विजय जी ।
Deleteसादर
वाकई इस महान कलाकार की हकीकत बयान करती हुई सी गजल !
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया आपका अनीता जी ।
Deleteसादर
वाह बहुत ही शानदार!!
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब।
बेहद शुक्रिया आपका ।
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