Saturday, June 20, 2020

जो बशर अपनों के ज़ुल्मों से बिख़र जाते हैं

💐#विनम्र_श्रद्धांजलि  💐  
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 #प्रतिभाशाली_कलाकार_एवं_उम्दा_शख्सियत_सुशांत_सिंह_राजपूत_जी की असमय विदाई पर 🙏#विनम्र_शाब्दिक_श्रद्धांजलि 
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जो बशर अपनों के ज़ुल्मों से बिख़र जाते हैं,
अपनी हस्ती को मिटा कर वो गुज़र जाते हैं ।

ले चले क़ोई भी क़ामिल उसे मंज़िल की तरफ,
फ़िर ज़िधर जाते हैं वो रूह में उतर जाते हैं ।

ग़र ख़बर थी कि वो शिकवों से ख़फ़ा हैं इतना,
कौन क़ातिल है देके दर्द-ए-ज़िगर जाते हैं ।

जो अदाओं से क़भी दिल में उतर जाएँ वो, 
इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं ।**

ज़ुल्म जब हद से गुज़रता है तो हँसती दुनियाँ,
मौत पर शख़्स वही अश्क़ ले घर जाते हैं ।

कौन कहता है ये तक़दीर ख़ुदा लिख़ता है,
कर्म अपने हैं हथेली में उभर जाते हैं ।

----हर्ष महाजन 'हर्ष'
बशर= आदमी
क़ामिल= पूर्ण/perfect

बहर:-
2122 1122 1122 22
"दिल की आवाज़ भी सुन दिल के फ़साने पे न जा"

11 comments:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया जोशी जी ।
    सादर ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 24 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया तृप्ति जी ।

      सादर ।

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  4. बेहतरीन...
    सादर.।

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    1. शुक्रिया दिग्विजय जी ।
      सादर

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  5. वाकई इस महान कलाकार की हकीकत बयान करती हुई सी गजल !

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    1. बेहद शुक्रिया आपका अनीता जी ।
      सादर

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  6. वाह बहुत ही शानदार!!
    हर शेर लाजवाब।

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    1. बेहद शुक्रिया आपका ।

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