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हम तो अपनों से सब ही हारे थे,
जुर्म कुछ उनके कुछ हमारे थे ।
बे-वफ़ाओं से थी निभाई वफ़ा,
अब वो मुश्किल में सब किनारे थे ।
जो उठाते थे उँगलियाँ हम पर,
साथ उनके ही दिन गुज़ारे थे ।
टूटकर जिनको हमने चाहा कभी,
हमको पत्थर उन्हीं ने मारे थे ।
हमको जन्नत ज़मीं पे मिल जाये,
काश मिल जाएं जो सहारे थे ।
--हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22/112
यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो
हम तो अपनों से सब ही हारे थे,
जुर्म कुछ उनके कुछ हमारे थे ।
बे-वफ़ाओं से थी निभाई वफ़ा,
अब वो मुश्किल में सब किनारे थे ।
जो उठाते थे उँगलियाँ हम पर,
साथ उनके ही दिन गुज़ारे थे ।
टूटकर जिनको हमने चाहा कभी,
हमको पत्थर उन्हीं ने मारे थे ।
हमको जन्नत ज़मीं पे मिल जाये,
काश मिल जाएं जो सहारे थे ।
--हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22/112
यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो
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