Re-written Gazal
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वो शख्स इस तरह मुझे बदनाम कर गया,
दिल में छुपे वो राज़ सर-ए-आम कर गया ।
नफरत नहीं मगर जो कहा बेवफ़ा मुझे,
वो शख्स इस तरह मुझे बे-दाम कर गया ।
रुक्सत हुआ तो दिल में लिए बोझ था बहुत,
वो जाते-जाते दोस्ती नीलाम कर गया ।
रुतबे पे अपने मुझको था क्या-क्या गुमाँ मगर,
किस-किस अदा से शह्र में बदनाम कर गया ।
दिलचस्प बात ये कि मुझे इल्म ही नहीं,
अपने वो क़र्ज़ सारे मेरे नाम कर गया ।
इतनी सी आरज़ू है कोई कह सके उसे,
है कौन जिसके वास्ते वीरान कर गया ।
चर्चा भी उसकी शह्र में इज़्ज़त भी बढ़ चली,
ऐसा लगा वो ख़ुद को सुलेमान कर गया ।
ऐ 'हर्ष' ऐसी दुनियाँ में कैसे जियेगा अब,
दिल में बसा जहान वो शमशान कर गया ।
ये ज़ुल्म ये हया ओ सज़ा उसने दी मुझे,
अब सोचता हूँ वो मुझे इंसान कर गया ।
----हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212
मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी कभी
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ReplyDeleteमेरी कृति को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
ReplyDeleteसादर ।
शानदार ग़जल सर।
ReplyDeleteसादर।
शुक्रिया श्वेता जी ।
Deleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
Deleteवाह!
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय ।
Deleteवाह बेहतरीन 👌
ReplyDeleteबेहद शुक्रिया अनुराधा जी ।
Deleteबहुत ही सुन्दर ।
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