...
कहीं दिल की गहराइयों में पड़ा है,
जवाँ दर्द है.........मुद्दतों से पला है ।
कभी बे-वफाई कभी छल का तकमा,
मुझे गैर क्या अपनों से भी मिला है ।
मैं तंग आ चुका, कश्मकश ज़िन्दगी से,
जो आरा ज़फ़ा का, यूँ दिल पे चला है ।
चले संग थे जो,.....वो आगे खड़े हैं,
सभी कुछ है पर मैं, वहीँ पे खड़ा हूँ ।
समंदर में कश्ती.....बही जा रही है,
है तूफां वो माझी......नशे में पड़ा है ।
-------------------हर्ष महाजन
बहर
122 122 122 122
कहीं दिल की गहराइयों में पड़ा है,
जवाँ दर्द है.........मुद्दतों से पला है ।
कभी बे-वफाई कभी छल का तकमा,
मुझे गैर क्या अपनों से भी मिला है ।
मैं तंग आ चुका, कश्मकश ज़िन्दगी से,
जो आरा ज़फ़ा का, यूँ दिल पे चला है ।
चले संग थे जो,.....वो आगे खड़े हैं,
सभी कुछ है पर मैं, वहीँ पे खड़ा हूँ ।
समंदर में कश्ती.....बही जा रही है,
है तूफां वो माझी......नशे में पड़ा है ।
-------------------हर्ष महाजन
बहर
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