Friday, April 8, 2016

इन हवाओं से कभी तेरा पता पूछूँगा,

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इन हवाओं से कभी तेरा पता पूछूँगा,
किस तरह छूटे मुझे तेरा नशा पूछूँगा ।

जाने क्यूँ ली थी कसम तू ने जुदा होने की,
तेरी धड़कन की सदाओं से सज़ा पूछूँगा ।

मुंतज़िर हूँ कि सितारो से फलक हो रौशन,
यूँ अंधेरों में बता किस से पता पूछूँगा ।

सैंकडों ख्वाब तेरे, नींद, चश्म से ओझल,
अश्क़ आँखों में मगर रस्में क़ज़ा पूछूँगा ।

ज़िन्दगी ख़ाक हूई आस सिफर होने तक,
अब सजेगी तेरी मजलिस तो ख़ता पूछूँगा ।

-------------------हर्ष महाजन

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2122-1122-1122-22

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