Tuesday, August 23, 2016

कुछ नज़र ती-सरे तिल पे आता नहीं (सूफियाना )


एक सूफियाना कलाम
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कुछ नज़र ती-सरे तिल पे आता नहीं,
तू जहाँ से क्युं मुझको उठाता नहीं ।

कब्र तक ये सफ़र अब बहुत हो चला,
ऐ खुदा मुझको घर क्यूँ बुलाता नहीं |

तोड़कर तूने मुझको तराशा बहुत,
जोह-री बन कभी तू बताता नहीं |

जन्मों-जन्मों से संचित हुए जो करम,
बक्शे तूने बहुत पर जताता नहीं |

बंद रख के जुबां कैसे बोलूं मैं क्या,
दसवें दरवाजे तक कोई खाता नहीं |

इतना नज़दीक लगते हो पर ध्यान में,
चेह-रा सामने फिर क्यूँ आता नहीं |

मेरा भगवन भी तू मेरा मौला भी तू,
कर रहम मुझको कुछ भी सुहाता नहीं |

कितने हैं खुश-नसीबां जो दर पे तेरे,
अब मेरी भी अलख क्यूँ जगाता नहीं |

ये मुहब्बत शुरू तुझसे तुझ पे ख़तम,
तेरे दर से कोई खाली जाता नहीं |

हर्ष महाजन


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
212-212-212-212

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    एक सूफियाना कलाम
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    ती-सरे तिल पे कुछ नज़्र आता नहीं,
    तू जहाँ से क्युँ मुझको उठाता नहीं ।

    कब्र तक ये सफ़र अब बहुत हो चला,
    ऐ ख़ुदा मुझको घर क्यूँ बुलाता नहीं |

    तोड़कर तूने मुझको तराशा बहुत,
    जोह-री बन कभी तू बताता नहीं |

    जन्मों से जो हुए कर्म संचित यहॉं,
    बक्शे तूने बहुत पर जताता नहीं |

    बंद रख के जुबां कैसे बोलूं मैं क्या,
    दसवें दरवाजे तक कोई खाता नहीं |

    इतना नज़दीक लगते हो पर ध्यान में,
    चेह-रा सामने फिर क्यूँ आता नहीं |

    मेरा भगवन भी तू मेरा मौला भी तू,
    कर रहम मुझको कुछ भी सुहाता नहीं |

    कितने हैं खुश-नसीबां जो दर पे तेरे,
    अब मेरी भी अलख क्यूँ जगाता नहीं |

    ये मुहब्बत शुरू तुझसे तुझ से ही अंत,
    तेरे दर से कोई खाली जाता नहीं |

    हर्ष महाजन 'हर्ष'
    23 अगस्त 2016
    बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
    212-212-212-212

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