Monday, December 26, 2016

ज़ख्म ऐसा दिया संग जवाब आ गया

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ज़ख्म ऐसा दिया संग जवाब आ गया,
आया गम भी मगर बेंनकाब आ गया ।

बात कुछ भी न थी, हो गयी इंतिहा,
और टूटा सा रिश्तों में ख्वाब आ गया ।

कश्ती सागर सी लहरों पे डोली न थी,
पर क्यूँ तूफान-ए-गम बेहिसाब आ गया ।

यूँ तो मेरी मुहब्बत भी कम तर न थी,
जाने अश्कों का फिर क्यूँ सलाब आ गया ।

चाह रुतबे की न थी क्या थी ये ख़ता,
ज़िंद में क्यूँ ये लम्हा बेताब आ गया  ।

ऐ खुदा सोचा तुझ से गिला तो करूँ,
तू भी कर्मों की खोले किताब आ गया ।

-----------हर्ष महाजन

212 212 212 212 212
बेताब = agitated
"आप यूँ ही अगर मुझसे मिलते रहे "

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