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ऐसी बस्ती में जाऊँ क्या,
कातिल का घर बतलाऊँ क्या ।
कुछ खस्ता हालत में है वो,
थोड़ा झूटा हो जाऊँ क्या ।*
अब जंग के गहरे सागर में,
खुद ही कश्ती में आऊँ क्या ।
आते जो ख्वाबों में अक्सर,
उनको ये ग़म समझाऊँ क्या ।
हर पग पे उल्लू दिखता है,
ये कह उनको पछताऊँ क्या ।
बस दुश्मन से सत्ता छीनों,
ये सुन-सुन अब घबराऊँ क्या ।
हम किस माटी में जन्में है,
कुछ वो नग्में सुनवाऊं क्या ।
हमलों में सब कुछ उजड़ा है,
अब पीड़ा इक-इक गाऊँ क्या ।
किस घर में मातम छाया है,
छत पे दीया जलवाऊँ क्या ।
------------हर्ष महाजन 'हर्ष'
22-22-22-22
मैं पल दो पल का शायर
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