Wednesday, April 22, 2020

मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ (तरही)

***

दिल से इक किस्सा सुहाना चाहता हूं,
इक फ़क़त दिलभर बनाना चाहता हूँ ।

आज बगिया में खिले हैं फूल इतने,
बन के भँवरा खुद दिखाना चाहता हूं ।

आग पानी में लगा दूँ तुम कहो तो,
इन हवाओं को बताना चाहता हूँ ।

एक तितली उम्र भर पहलू में बैठे,
बन परिंदा मैं निभाना चाहता हूँ ।

देख लूँ तेरी अगर आँखों में  नफ़रत,
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ ।*

क्यूँ मुहब्बत दे नहीं सकते वो मुझको,
अब सफ़र मैं भी सुहाना चाहता हूं ।

क्या दिलों को रौंदकर सीखा है तुमने,
ग़ज़लों में अपनी उठाना चाहता हूँ।

---- हर्ष महाजन :हर्ष'
2122 2122 2122
छोड़ दो आँचल ज़माना क्या कहेगा

No comments:

Post a Comment