Saturday, April 4, 2020

किताब ए ज़िन्दगी में देखे थे ईमान के दुश्मन

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किताब ए ज़िन्दगी में देखे थे ईमान के दुश्मन,
ज़माने भर के तबलीगी हुए इंसान के दुश्मन,

मिटा है इस कदर इस मुल्क से चैनो अमन देखो,
मुहब्बत भूल थी इनसे, हुए ये जान के दुश्मन ।

गुनाहों का ये आलम देखो तो इतने ये बे-गैरत,
सियासत ताक पे रख, हो गए फरमान के दुश्मन ।

ये सोचा था दिवारें मज़हबी हम तोड़ डालेंगे
मगर सद्भावना में हो रहे बलिदान के दुश्मन ।

सबाब ए इश्क की दौलत तो भारत में बहुत लेकिन,
उठी नफरत की ऐसी बाढ़ कि हलकान है दुश्मन ।

कि रोको अब तबाही के ये मंज़र ज़हर उगलेंगे,
पलट दो उनके मंसूबे जो हिंदोस्तान के दुश्मन ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222

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