Wednesday, April 1, 2020

जो दिल्ली को मैयत बनाने लगे

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जो दिल्ली को मैयत बनाने लगे, 
वो मरकज़ में महफ़िल सजाने लगे ।

वो कैसी थी मस्ज़िद थी कैसी दुकाँ,
जहां लौ से लौ वो जलाने लगे ।

हकीकत परखने को राजी न थे,
वो पतझड़ सा खुद को गिराने लगे ।

हुए रूबरू तो मिले कुछ निशाँ,
बिना जंग लाशें बिछाने लगे ।

ज़नाजे बहुत निकलेंगे अब यहाँ,
हवा के थपेड़े बताने लगे ।

---------हर्ष महाजन 'हर्ष'

122 122 122 12
बहारों ने मेरा चमन लूट कर

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