इतनी सी बात गर ये बशर जान जाएगा,
नश्वर जहाँ से तन्हा ये इंसान जाएगा ।
तेरे हकूक तेरे नहीं सब खुदा का है,
थोड़ा जहाँ में ठहर तू पहचान जाएगा ।
कितना संभल के भी तू बना अपना आशियाँ,
मत सोच खाली कोई भी तूफ़ान जाएगा ।
गर ज़िन्दगी में तुझको लगे डर अँधेरों से,
नज़रें टिकाना संग निगहबान जाएगा ।
है इल्तिज़ा ख़ुदा से बसा दे बशर कोई,
जो लिख के हिज़्र पर कोई दीवान जाएगा ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212
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