Sunday, May 3, 2015

आओ चलेंगे हम भी खुश्बू के शहर में

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आओ चलेंगे हम भी खुश्बू के शहर में,
ग़ज़लें पड़ी हैं मेरी कुछ कर लें बहर में |

गर लिख दूं अपनी यादें किताबों की तरह,
होंगे बहुत से बलवे फिर यूँ ही शहर में |

कैसे बनेगा गुलशन अब फूलों के बिना,
उजड़ी हैं कलियाँ इतनी रिश्तों के ज़हर में |

गर खौलते है वो अब यूँ पानी की तरह,
हम आफताब-ए-गम से जलते दोपहर में |

अब कौन जाने कीमत जज्बातों की ‘हर्ष’,
कैसे बचाऊँ इनको अल्फासों के कहर में |
© हर्ष महाजन

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