...
तू रकीबों की जानिब सरकती रही,
मैं सुलगता रहा तू बहकती रही |
मैं तेरे अंजुमन में यूँ ही रात दिन,
बस टहलता रहा तू बिखरती रही |
तू यूँ ग़ैरों की महफ़िल में हँसती रही,
मैं तो घुटता रहा तू मचलती रही |
मैं तो जज़्बातों में ख्व़ाब बुनता रहा,
रफ्ता-रफ्ता ज़फ़ा कर तु छलती रही |
मैं तेरी राहों से शूल चुनता रहा,
पर तू राहों में राहें बदलती रही |
तू रकीबों की जानिब सरकती रही,
मैं सुलगता रहा तू बहकती रही |
मैं तेरे अंजुमन में यूँ ही रात दिन,
बस टहलता रहा तू बिखरती रही |
तू यूँ ग़ैरों की महफ़िल में हँसती रही,
मैं तो घुटता रहा तू मचलती रही |
मैं तो जज़्बातों में ख्व़ाब बुनता रहा,
रफ्ता-रफ्ता ज़फ़ा कर तु छलती रही |
मैं तेरी राहों से शूल चुनता रहा,
पर तू राहों में राहें बदलती रही |
मेरे ख़्वाबों की
महफ़िल में लौट आओ अब,
मेरी मंजिल यही तू कुचलती रही |
अब तो ख़्वाबों की मह्फ़िल से लौट आ यहाँ,
चल उसी राह जिस राह चलती रही |
© हर्ष महाजन
मेरी मंजिल यही तू कुचलती रही |
अब तो ख़्वाबों की मह्फ़िल से लौट आ यहाँ,
चल उसी राह जिस राह चलती रही |
© हर्ष महाजन
212 212 212 212
26th अप्रैल 2009
http://harashmahajan.blogspot.in/search?q=Tu+rakeeboN+ki+jaanib+sarakti+rahi
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