...
मुझे गम है मेरा कोई यहाँ दीवाना नहीं है,
यकीनन दुनिया ने मुझको यहाँ पहचाना नहीं है ।
हुआ हूँ पारा-पारा देख ज़माने की अदाओं को,
मुझे क्यूँ लगता था कोई यहाँ बेगाना नहीं है ।
चले तलवारों की माफिक जुबां अपने करीबों की,
लगे वेसे भी अब मौसम यहाँ सुहाना नहीं है ।
हुए हमदर्द अब दुश्मन खुदाया दे कफन मुझको,
यहाँ बे-दर्द दुनिया में मेरा ठिकाना नहीं है ।
तजुर्बा हो गया मुझको सहे जो शोले नफरत के
हुई जो साजिशें पर 'हर्ष' यहाँ अनजाना नहीं है ।
मुझे गम है मेरा कोई यहाँ दीवाना नहीं है,
यकीनन दुनिया ने मुझको यहाँ पहचाना नहीं है ।
हुआ हूँ पारा-पारा देख ज़माने की अदाओं को,
मुझे क्यूँ लगता था कोई यहाँ बेगाना नहीं है ।
चले तलवारों की माफिक जुबां अपने करीबों की,
लगे वेसे भी अब मौसम यहाँ सुहाना नहीं है ।
हुए हमदर्द अब दुश्मन खुदाया दे कफन मुझको,
यहाँ बे-दर्द दुनिया में मेरा ठिकाना नहीं है ।
तजुर्बा हो गया मुझको सहे जो शोले नफरत के
हुई जो साजिशें पर 'हर्ष' यहाँ अनजाना नहीं है ।
No comments:
Post a Comment