...
कैसे मैं कहूँ तुझको नज़र है कि नहीं है,
जो घाव दिए दिल पे खबर है कि नहीं है |
महफ़िल से अचानक ही अधर में चले जाना,
देखो तो ग़ज़ल में वो असर है कि नहीं है |
छलनी जो किया तूने हुआ कैसे मैं जालिम,
अब सोच कोई मुझमें कसर है कि नहीं है |
इतना था हुआ रंज मुझे खुदकशी चुनी,
सोचा न समंदर में भँवर है कि नहीं है |
मैं तुझसे परेशान हुआ अश्क़ों से ख़ारिज़,
जानू न मुकद्दर में ठहर है कि नहीं है |
हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहरे हज़ज़ मुसम्मन अखरब महफूफ महजूफ
221 - 1221 - 1221 - 122
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