Wednesday, June 15, 2016

कैसे मैं कहूँ तुझको नज़र है कि नहीं है

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कैसे मैं कहूँ तुझको नज़र है कि नहीं है,
जो घाव दिए दिल पे खबर है कि नहीं है |

महफ़िल से अचानक ही अधर में चले जाना,
देखो तो ग़ज़ल में वो असर है कि नहीं है | 

छलनी जो किया तूने हुआ कैसे मैं जालिम, 
अब सोच कोई मुझमें कसर है कि नहीं है |

इतना था हुआ रंज मुझे खुदकशी चुनी, 
सोचा न समंदर में भँवर है कि नहीं है |  

मैं तुझसे परेशान हुआ अश्क़ों से ख़ारिज़,  
जानू न मुकद्दर में ठहर है कि नहीं है |

हर्ष महाजन 'हर्ष'

बहरे हज़ज़ मुसम्मन अखरब महफूफ महजूफ 
221 - 1221 - 1221 - 122

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