हुआ इश्क़ में सब सिफ़र रोते-रोते,
बहुत खोया मैंने गुज़र होते-होते ।
मैँ कहता रहा हूँ ग़मों के फ़साने,
यूँ तड़पा बहुत ये हुनर ढोते-ढोते ।
यूँ अश्क़ों में भीगा रहा उम्र भर जो,
यूँ कब तक चलेगा सफ़र रोते-रोते ।
दुआ मैं करूँ क्या ख़ुदाओं से हर दम,
थका हूँ वफ़ा की डगर खोते-खोते ।
बता 'हर्ष' क्यूँ अब तू जालिम न बनता,
पिया ज़ह्र इतना ग़दर होते-होते।
---------हर्ष महाजन 'हर्ष' ©
"122 122 122 122"
"तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ"
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