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पल दो पल की रुक्सती क्यूं ज़ार-ज़ार कर चली,
दिल से मेरे दिल्लगी क्यूँ बार-बार कर चली ।
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दिल से मेरे दिल्लगी क्यूँ बार-बार कर चली ।
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ज़ुल्फ़ फिर अदा से अपनी शानों पर बिखेर कर,
दिल चुरा के मुझको शर्म सार यार कर चली |
मुझसे गर खफा बता मैं ज़िन्दगी बदल चलूँ,
पर बदलती ये निगाह तार-तार कर चली ।
दिल में छवि थी हूर की वो अजनबी सी कल्पना,
कल्पना में ही सनम वो आर-पार कर चली |
ज़ुल्म इंतिहा पे उसका नूर आँखों में सजे,
ये अदा भी मेरी आँखें जार-जार कर चली |
हर्ष महाजन
2121-2121-2121-212
(Non-Standard)
दिल चुरा के मुझको शर्म सार यार कर चली |
मुझसे गर खफा बता मैं ज़िन्दगी बदल चलूँ,
पर बदलती ये निगाह तार-तार कर चली ।
दिल में छवि थी हूर की वो अजनबी सी कल्पना,
कल्पना में ही सनम वो आर-पार कर चली |
ज़ुल्म इंतिहा पे उसका नूर आँखों में सजे,
ये अदा भी मेरी आँखें जार-जार कर चली |
हर्ष महाजन
2121-2121-2121-212
(Non-Standard)
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