Sunday, June 26, 2016

पल दो पल की रुक्सती क्यूं ज़ार-ज़ार कर चली





पल दो पल की रुक्सती क्यूं ज़ार-ज़ार कर चली,
दिल से मेरे दिल्लगी क्यूँ बार-बार कर चली ।
.
ज़ुल्फ़ फिर अदा से अपनी शानों पर बिखेर कर,
दिल चुरा के मुझको शर्म सार यार कर चली |

मुझसे गर खफा बता मैं ज़िन्दगी बदल चलूँ,
पर बदलती ये निगाह तार-तार कर चली ।

दिल में छवि थी हूर की वो अजनबी सी कल्पना,
कल्पना में ही सनम वो आर-पार कर चली |

ज़ुल्म इंतिहा पे उसका नूर आँखों में सजे,
ये अदा भी मेरी आँखें जार-जार कर चली |


हर्ष महाजन
2121-2121-2121-212
(Non-Standard)

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