Monday, June 27, 2016

तिरछी पड़ी तेरी नज़र की हम दिवाने हो गये

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तिरछी पड़ी तेरी नज़र की हम दिवाने हो गये,
थे ख्वाब गुजरी रात के वो सब पुराने हो गये |
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अपनी अना की चोट से धड़कन को मैंने खो दिया,
प्यार के किस्से थे जो पल में फ़साने हो गये |

मिलते थे तुम तो ज़िंदगी में ख़्वाबों की थी कश्तियाँ,
सच बहारों के वो दिन गुजरे ज़माने हो गये |

हम तो रहे थे हम-बगल चाहा बने अब हम-सफ़र,
पर ख्वाब वो अपने सुहाने सब ठिकाने हो गये |

उठने लगा जो रफ्ता-रफ्ता अब ज़हन से इक धुंआ,
अश्कों भरे ये तनहा पल अपने खजाने हो गये |

ये दर्द फिर-फिर सीने में अब ढूंढता है रास्ता,
अब ज़ख्म इतने हो गये वो भी दिवाने हो गये |


हर्ष महाजन

बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम
2212 - 2212 - 2212 - 2212

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