Monday, June 27, 2016

मेरी अधीर आँखें हैं सागर पिए हुए

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मेरी अधीर आँखें हैं सागर पिए हुए,
वो बह रही है उम्र से आंसू लिए हुए |

इक वक़्त था वो शैदा थे मेरे शबाब पर,
पर आज गैरों से वो हैं शिर्कत किये हुए |


मेरा जुनूं था उनका मैं सिजदा करूँ कभी,
अब क्या कहूँ वो चोट है दिल पर दिए हुए |


पूंछा किये हैं अश्क तो मेरे तरीन दोस्त,
पर दाग वो किसे कहूँ, हैं लब सिए हुए |


अब छू रही बुलंदी को आन्हें जरा सुनों,
ये कौन शै है दिल को यूँ पत्थर किये हुए | 



हर्ष महाजन 


मुजारी मुसम्मन अखरब मख्फूफ़ महजूफ
221 2121 1221 212

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