Sunday, January 23, 2022

ठंडी हवा का झोंका था आकर चला गया,

ठंडी हवा का झोंका था आकर चला गया,
इक मौसमी बहार लुभाकर चला गया ।

तूफाँ में फँस गया था समंदर के बीच में,
हो जाऊँगा फ़ना यूँ रुलाकर चला गया ।

रोया था कितनी बार भँवर के मैं जाल में,
लेकिन ख़ुदा किनारा दिखाकर चला गया ।

मुझको पता तूफाँ की हक़ीक़त का चल गया,
कीमत यूँ ज़िन्दगी की बताकर चला गया ।

फितरत वो ज़लज़ले की यहाँ थी भी इस तरह,
मकसद वो ज़िन्दगी के जलाकर चला गया ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212

12 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-1-22) को " अजन्मा एक गीत"(चर्चा अंक 4321)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी ।

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  2. वाह बहुत ही खूबसूरत व हृदयस्पर्शी

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    1. ज़र्रानावाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया आपका । उम्मीद करता हूँ आपकी प्रतिक्रिया मुसलसल मिलती रहेगी ।
      सादर
      🌺🌺🌺🌺

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  3. वाह! जीवन हर घड़ी कुछ न कुछ सिखाता है

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    1. दिली धन्यवाद आपका । उम्मीद करता हूँ आप आइंदा भी होंसिला अफजाई के लिए आते रहेंगे ।

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  4. शानदार उम्दा सृजन।
    बहुत सुंदर।

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    1. आपकी आमद औऱ उस पर आपकी होंसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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    1. आपकी आमद औऱ उस पर आपकी होंसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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  6. 'रोया था कितनी बार भँवर के मैं जाल में,
    लेकिन ख़ुदा किनारा दिखाकर चला गया।' - बहुत खूब जनाब!

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    1. आपकी पसंदंगी के लिए दिली धन्यवाद आपका । ये आपका नज़रिया है जो मेरे लफ़्ज़ों में उतार आता है आदरनीय । उम्मीद करता हूँ आप आइंदा भी होंसिला अफजाई के लिए आते रहेंगे ।

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