ठंडी हवा का झोंका था आकर चला गया,
इक मौसमी बहार लुभाकर चला गया ।
इक मौसमी बहार लुभाकर चला गया ।
तूफाँ में फँस गया था समंदर के बीच में,
हो जाऊँगा फ़ना यूँ रुलाकर चला गया ।
रोया था कितनी बार भँवर के मैं जाल में,
लेकिन ख़ुदा किनारा दिखाकर चला गया ।
मुझको पता तूफाँ की हक़ीक़त का चल गया,
कीमत यूँ ज़िन्दगी की बताकर चला गया ।
फितरत वो ज़लज़ले की यहाँ थी भी इस तरह,
मकसद वो ज़िन्दगी के जलाकर चला गया ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-1-22) को " अजन्मा एक गीत"(चर्चा अंक 4321)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी ।
Deleteवाह बहुत ही खूबसूरत व हृदयस्पर्शी
ReplyDeleteज़र्रानावाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया आपका । उम्मीद करता हूँ आपकी प्रतिक्रिया मुसलसल मिलती रहेगी ।
Deleteसादर
🌺🌺🌺🌺
वाह! जीवन हर घड़ी कुछ न कुछ सिखाता है
ReplyDeleteदिली धन्यवाद आपका । उम्मीद करता हूँ आप आइंदा भी होंसिला अफजाई के लिए आते रहेंगे ।
Deleteशानदार उम्दा सृजन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
आपकी आमद औऱ उस पर आपकी होंसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
Deleteबेहतरीन सृजन
ReplyDeleteआपकी आमद औऱ उस पर आपकी होंसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
Delete'रोया था कितनी बार भँवर के मैं जाल में,
ReplyDeleteलेकिन ख़ुदा किनारा दिखाकर चला गया।' - बहुत खूब जनाब!
आपकी पसंदंगी के लिए दिली धन्यवाद आपका । ये आपका नज़रिया है जो मेरे लफ़्ज़ों में उतार आता है आदरनीय । उम्मीद करता हूँ आप आइंदा भी होंसिला अफजाई के लिए आते रहेंगे ।
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